महाराज कृष्णदेव कई बार अपने दरबारियों की बुद्धि का परीक्षण किया करते थे।
ऐसे ही उन्होंने एक दिन भरे दरबार में सभी छोटे-बड़े दरबारियों को हजार-हजार सोने की मुद्राएं दीं और फिर बोले, “आप सबको एक सप्ताह का समय दिया जाता है। सप्ताह भर के अंदर आपको यह धन अपने ऊपर खर्च करना है, लेकिन शर्त यह है कि आप लोग मुद्राएं खर्च करते समय हमारा मुंह जरूर देखें।”
सभी दरबारियों ने हंसी खुशी वह मुद्राएं ले लीं और बाजार की ओर चल दिए। खरीददारी तो वे करते, मगर राजा की शर्त याद आते ही परेशान हो उठते। कारण यह था कि मुद्राएं खर्च करते समय राजा का मुंह कैसे देखें।
इसी परेशानी में एक सप्ताह का समय गुज़र गया। राजा की आज्ञा को नज़रअंदाज भी नहीं किया जा सकता था। यदि महाराज ने पूछ लिया कि खर्च करने से पहले मेरा मुंह कैसे देखा तो क्या जवाब देंगे।
एक सप्ताह के बाद जब दरबार लगा तो सबसे पहले दरबारियों से महाराज ने यही पूछा, “हमें बताइए, आप लोगों ने क्या-क्या खरीदारी की?”
सभी दरबारियों की तरफ से राजपुरोहित बोले, “हम कुछ कैसे खरीद सकते थे महाराज, आपकी शर्त ही ऐसी थी। बाजार में आपका चेहरा हम कैसे और कहां देखते? इसलिए ना आपके दर्शन हुए और ना हम मुद्राएं खर्च कर सके।”
अब महाराज ने तेनालीराम से पूछा, “और तेनालीराम तुम। क्या तुम भी मुद्राएं खर्च नहीं कर पाए?”
तेनालीराम ने कहा, “महाराज! मैंने सारी मुद्राएं खर्च कर दी हैं।”
राजा ने कहा, “इसका मतलब तुम ने हमारी आज्ञा का पालन नहीं किया?”
इस पर तेनालीराम ने कहा, “हरगिज नहीं महाराज! मैं आपकी आज्ञा का अनादर कभी नहीं कर सकता। मैंने आपका चेहरा देखकर ही मुद्राएं खर्च की हैं।”
महाराज ने पूछा, “अच्छा! वह कैसे?”
तेनालीराम ने जवाब दिया, “महाराज हर एक मुद्रा पर आपका चित्र अंकित है।”
यह सुनते ही महाराज मुस्कुराने लगे और सभी दरबारी तेनालीराम का चेहरा देखते रह गए।
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