राजा कृष्णदेवराय के राज्य में एक कंजूस सेठ रहता था। उसके पास धन की कोई कमी नही थी, पर वह बहुत ही कंजूस था।
एक बार उसके कुछ मित्रों ने हँसी-2 में उसे एक कलाकार से अपना चित्र बनवाने के लिए तैयार कर लिया, उनके सामने तो वह मान गया, पर जब चित्रकार उसका चित्र बनाकर लाया, तो चित्र के मूल्य के रूप में चित्रकार को सौ स्वर्णमुद्राएँ दे देने की सेठ की नीयत नही हुई।
सेठ को एक तरकीब सूझी। चित्रकार को आया हुआ देखकर सेठ अपने घर के अंदर गया और कुछ ही क्षणों में अपना चेहरा बदलकर बाहर आया।
उसने चित्रकार से कहा, ‘तुम्हारा चित्र जरा भी ठीक नहीं बना है। तुम्हीं बताओ, क्या यह चेहरा मेरे चेहरे से जरा भी मिलता है?’ चित्रकार ने देखा, सचमुच में चित्र सेठ के चेहरे से नहीं मिल रहा था।
तभी सेठ बोला, ‘जब तुम ऐसा चित्र बनाकर लाओगे, जो बिल्कुल मेरी शक्ल से मिलेगा, तभी मैं उसे खरीदूँगा।’
दूसरे दिन चित्रकार एक और चित्र बनाकर लाया, जो हूबहू सेठ के उस चेहरे से मिलता था, जो सेठ ने पहले दिन बना रखा था। इस बार फिर से सेठ ने अपने चेहरे के हाव-भाव बदल लिए और चित्रकार के बनाए हुए चित्र में कमी निकालने लगा। वह चित्रकार बड़ा ही लज्जित हुआ। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस तरह की गलती उसके चित्र में क्यों हो रही थी?
अगले दिन वह फिर एक नया चित्र बनाकर ले गया, पर उसके साथ फिर वही हुआ। अब उसकी समझ में सेठ की चाल आ चुकी थी। वह जानता था कि यह मक्खीचूस सेठ असल में चित्र के पैसे नहीं देना चाहता, पर चित्रकार अपनी कई दिनों की मेहनत भी बेकार नहीं जाने देना चाहता था।
बहुत सोच-विचार करके वह चित्रकार तेनालीराम के पास पहुँचा और अपनी समस्या उनसे कह सुनाई।
कुछ समय सोचने के बाद तेनालीराम ने चित्रकार से कहा, ‘कल तुम उस सेठ के पास एक शीशा लेकर जाओ और कहो कि इस बार मैं आपकी बिलकुल असली तस्वीर लेकर आया हूँ। अच्छी तरह मिलाकर देख लीजिए। आपको कहीं कोई अंतर नहीं मिलेगा। बस, फिर अपना काम हुआ ही समझो।’
अगले दिन चित्रकार ने ऐसा ही किया।
वह चित्रकार एक शीशा लेकर सेठ के यहाँ पहुँचा और उसके सामने रख दिया।
‘लीजिए, सेठ जी, आपका बिलकुल सही चित्र। इसमें गलती की जरा भी गुंजाइश नहीं है।’ चित्रकार ने अपनी हँसी पर काबू पाते हुए कहा।
‘लेकिन यह तो शीशा है।’ सेठ ने झुँझलाते हुए कहा।
‘आपकी असली सूरत शीशे के अलावा बना भी कौन सकता है? जल्दी से मेरे चित्रों का मूल्य एक हजार स्वर्णमुद्राएँ निकालिए।’ चित्रकार बोला।
सेठ समझ गया कि यह सब तेनालीराम की सूझबूझ का परिणाम है। उसने तुरंत एक हजार स्वर्णमुद्राएँ चित्रकार को दे दीं।
तेनालीराम ने जब यह घटना महाराज कृष्णदेव राय को बताई तो वह खूब हँसे।
******
No comments:
Post a Comment